बुधवार, 26 दिसंबर 2018



दलित - अब नहीं भेदभाव 
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जातिवाद को ढाल बनाकर देश के नेताओं ने देश में विकास की रफ़्तार को लील लिया है। कभी दलित ,
कभी अल्पसंख्यक ,कभी जाट ,कभी मराठा आदि को लुभावने लालच देकर अपना वोट बैंक बनाने की 
कोशिश में ये नेता लोग भूल गए हैं की सबसे पहले देश सर्वोपरि होता है। इन नेताओं को पता है की सरकारी नौकरियाँ तो है नहीं लेकिन फिर भी आरक्षण के नाम पर युवा वर्ग को बरगलाते रहते हैं। 

इन सबमें खासकर दलित शब्द को खूब भुनाया गया। दलित और अल्पसंख्यक के नाम पर नेता करोड़पति हो गए लेकिन ये दोनों समुदाय आज भी विकास की लहर में पिछड़े हुए हैं। इनके नेताओ ने इनके नाम पर वोट तो बहुत लिए लेकिन इनके विकास के लिए कुछ नहीं किया सिवाय अपनी जेबें भरने के। 

आज एक समाचार छपा की बाबा गोरखनाथ मंदिर के पुजारी दलित हैं। इसमें आश्चर्य की बात कुछ नेताओ के लिए हो सकती है लेकिन आम जनता के लिए नहीं। क्योकि ऐसा तो बहुत जगह है लेकिन दलित नेता हमेशा दलित के उत्पीड़न की चर्चा करते हैं। दलित और अन्य समाज के भाई चारे की चर्चा नहीं करते। विडंबना की बात यह भी है की दलित नेता कुछ ही सालों में अमीर हो जाते हैं और आरक्षण से आगे बढ़े दलित को अपना घर ,समाज याद नहीं रहता। होना तो यह चाहिए की एक परिवार को आरक्षण का लाभ मिलने पर आगे की उनत्ति उसकी योग्यता पर निर्भर होनी चाहिए और अन्य परिवार के जरूरतमंद को नई नौकरी मिलनी चाहिए। वैसे तो आरक्षण आर्थिक आधार पर ही होना न्यायसंगत है। जिससे हर गरीब को आगे बढ़ने का मौका मिल सके। 

हो सकता है की कुछ जगहों पर कथित दबंग अपनी दबंगई दिखाने को दलितों पर अत्याचार या छुआछूत करते हों लेकिन हकीकत कुछ और ही है। आज दलित बेरोजगार नहीं है ,कुछ न कुछ कार्य या नौकरी कर रहा है। अनेक होटलों में ,ब्याह -शादी में दलित आदि वेटर का कार्य करते हैं। कथित बड़े लोगो या दबंगो की शादी आदि में जो अपने गांव -देहात में छुआ छूत से ग्रस्त रहते हैं ब्याह -शादी में इनके हाथों से डट कर भोजन करते हैं। ऐसी अन्य अनेक बाते हैं जो दिखाती हैं की आज दलित सबके 
साथ मिलजुलकर कार्य कर रहा है। व्यापार में ,कारखाने में ,बैंक में अन्य सरकारी -गैर सरकारी संस्थानों में आज दलित सबके साथ मिलजुलकर सभी प्रकार का कार्य करता नज़र आता है। 
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अपना मल तो सब अपने हाथ से ही धोते हैं 
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कटु सत्य  है की हम जिस इंसान को जिस कार्य के लिए अछूत समझते हैं हम सभी प्रातः सबसे पहले 
अपना वही कार्य अपने हाथ से करते हैं। फिर हम नहा धोकर शुद्ध हो जाते हैं लेकिन वही कार्य करने वाला समाज में अछूत कहलाता है -क्यों ?

यदि नहाने धोने से शरीर शुद्ध हो जाता है तो सबका हो जाना चाहिये। इसमें भेदभाव की क्या बात है ?
हम किसी जगह किसी पंक्ति में खड़े हो हमे पता नहीं होता हमारे आगे -पीछे वाला कौन है ?बस में ,रेल में ,हवाईजहाज में हमारे बराबर की सीट पर कौन जात है हमें पता नहीं होता। फिर क्यों पता चले ही हम असहाय से क्यों हो जाते हैं। अब हमे इस मानसिकता को बदलना ही होगा। हमारे नेताओं को भी जात पात से परे देश की उन्नति के लिए सोचना चाहिए।                      http://suniljainrana.blogspot.com/



शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018


सरकारी गोदामों में सड़ रहा अनाज -क्यों ?
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एक समाचार से पता चला की  Fci के भंडारण में पिछले चार सालो में 33700 टन खाद्यान बर्बाद हो गया।

कितने दुर्भाग्य की बात है एक तरफ हमारे देश में करोड़ो लोग भूखे रह जाते हैं वहीं दूसरी तरफ हज़ारो टन

अनाज उचित भंडारण की कमी के कारण बारिश में भीग कर बर्बाद हो जाता है।

ऐसा पिछले चार सालों से नहीं बल्कि कई दशकों से हो रहा है। गोदामों की कमी के कारण अनाज को बाहर

खुले में रख दिया जाता है। बरसात के दिनों में अनाज पर तिरपाल आदि से ढक दिया जाता है। फिर भी

लापरवाही के कारण बहुत सा अनाज पूरी तरह ना ढकने के कारण भीग जाता है और खराब हो जाता है।

अनाज भीग जाता है या भिगोया जाता है ?
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सरकारी गोदामों में अनाज का भीगना कोई साधारण बात नहीं है। लाखों रूपये प्रति माह वेतन लेने वाले अधिकारी अनाज भीगने पर जिम्मेदार क्यों नहीं होते ?क्यों हज़ारो रूपये की तिरपाल की लापरवाही के कारण
करोड़ो रूपये का अनाज भीगने दिया जाता है। जबकि यह प्रत्येक साल की प्रकिर्या है।

पिछले वर्ष मैंने एक वीडियो जो फ़ेसबुक पर आया था उसे ब्लॉग पर पोस्ट किया था। वीडियो में किसी गोदाम में अनाज को पानी के पाईप से कर्मचारी द्वारा भिगोया जा रहा था। ऐसा तो जानबूझकर ही किया जा रहा होगा ?
ऐसे में खले में भरी बारिश से अनाज भीगने पर तो अधिकारी पर कहने को बहुत कुछ होता है।

शराब माफ़िया को बेचा जाता है भीगा अनाज़ ?
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सूत्र बताते हैं की अनाज़ को भीगने देने के पीछे भ्र्ष्टाचार का बहुत बड़ा हाथ होता है। अनाज़ भीग जाने पर वह बिकने योग्य तो रहता नहीं। कागजो में उससे बीमारी फैलने -उसमे जानवर पैदा होने को दर्शाया जाता है। मज़े की बात यह भी सुनने को मिलती है की अब उस अनाज़ की उठवाई के भारी बिल बनाये जाते हैं। जबकि यह
सब सुनियोजित हो रहा है और भीगा अनाज़ शराब माफ़िया को बेचा जाता है जिससे बीयर आदि बनाई जाती है।

जबाबदेही क्यों नहीं ?
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इस सब मामले में जब तक संबंधित अधिकारियों की जबाबदेही तय नहीं होगी तब तक ऐसा ही चलता रहेगा।
बताया जाता है की घटतौली और घटिया क्वालिटी का अनाज़ सबकी जांच से बचने के लिए भी अनाज़ को भीगने दिया जाता है। भारत जैसे देश में जहां आज भी करोड़ो गरीब भूखे पेट सोते हो ऐसे में करोड़ो रूपये के अनाज़ की ऐसी बर्बादी दुर्भाग्यपूर्ण ही है। वे कैसे इंसान हैं जो गरीब के पेट पर लात मारकर अपने पेट भरने में लगे रहते हैं। उनपर ऊपर वाले की लाठी पता नहीं कब पड़ेगी ?                          http://suniljainrana.blogspot.com/




शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018



चुनावों से पूर्व मुफ्त की बंदरबाट पर रोक लगे  

चुनावों से पूर्व राजनीतिक दल चुनाव में जीतने के लिए जनता को मुफ्त में कुछ भी देने या बैंको से लिया कर्जा माफ़ करने की घोषणाएं करने लगते है। देश की सभी पार्टियां इस कार्य में पीछे नहीं हैं। 

अभी हाल ही में हुए पांच राज्यों के चुनावों में भी यही हाल रहा। तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है। अब इन्हे अपने किये वायदों को पूरा करना पड़ेगा। खासकर किसानों के कर्ज माफ़ी की घोषणा के कारण ही कांग्रेस को चुनाव में जीत मिली है। अब सरकार बनने के दस दिन के अंदर उन्हें किसानों का कर्ज माफ़ करना होगा। हो सकता है कांग्रेस अपना किया वायदा निभाये। लेकिन ऐसे वायदे राज्य की अन्य जनता के लिए धोखा ही हैं। किसी भी राज्य को चलाने के लिए धन की जरूरत होती है। यदि धन सरप्लस होता तो राज कर रही पहली सरकार ही कर्जा माफ़ कर देती। 

इस तरह फ्री में बाटने की प्रवृति से राज्य की अन्य योजनाओं पर असर पड़ता है। एक राज्य के पास जितना धन या राजस्व होता है उसी में जनता की भलाई के कार्य करने होते हैं। ऐसे में उसमे से अधिकांश धन किसी की भलाई में खर्च कर देने से विकास कार्य रुकेंगे ही। 

चुनावो से पूर्व मुफ्त में बाटने की प्रवृति पर पाबंदी लगनी चाहिए। कोई भी राजनीतिक दल यदि कुछ भी मुफ्त में बाटने की घोषणा करता है तो वह उसे अपनी पार्टी के फण्ड से बांटना चाहिए। 

शनिवार, 1 दिसंबर 2018





श्री दया सिंधु जीव रक्षा केंद्र , सहारनपुर
 सुनील जैन राना  (संयोजक )

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बुधवार, 28 नवंबर 2018


मरने वाले थे जो कबूतर , अब मस्ती कर रहे हैं

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श्री दया सिंधु जीव रक्षा केंद्र में सैंकड़ो कबूतर मस्ती करते रह रहे हैं। दरअसल सहारनपुर में अनेक मुस्लिम बंधु
कबूतर पालते हैं। अक्सर सर्दियों में कबूतरों को नज़ला -ठंड और लकवे की बीमारी हो जाती है। यह बीमारियां
एक से दूसरे में जल्दी फैलती हैं। ऐसे में कबूतर पालक ज्यादा बीमार या यो कहिये की मरने की हालत वाले कबूतरों को संस्था में छोड़ जाते हैं। हालांकि संस्था द्वारा कबूतरों के लिए निःशुल्क दवाई दी जाती है फिर भी अनेक कबूतर संस्था में छोड़ जाते हैं। ऐसे कबूतरों का उपचार -दानापानी -देखभाल संस्था द्वारा होने पर उनमे से अनेक कबूतर बचा लिए जाते हैं। जिन्हे हम वापिस नहीं करते हैं।

मज़े की बात यह है की संस्था में रहने वाले कबूतर कहीं जाने को भी तैयार नहीं होते। यहां इन्हे चार प्रकार का
अनाज दिया जाता है। नहाने और पीने को कई मिटटी के बड़े बर्तन पानी से भरे रहते हैं जिनमे ये कबूतर मस्ती
भी करते हैं। 

कबूतर को हम शांति दूत मानते हैं लेकिन मेरी समझ में कबूतर बहुत शैतान पक्षी है। ये आपस में ही एक दूसरे को बर्दास्त नहीं करते। बीमार कबूतर को परेशान करते हैं। इस पर मै कभी एक लेख लिखूँगा। 

श्री दया सिंधु जीव रक्षा केंद्र ,चिलकाना रोड ,सहारनपुर -247001 द्वारा हज़ारो पशु पक्षियों की जान बचाई जा
चुकी है। हम मनुष्य हैं ,मानवता -जीव दया की भावना हम सबमें होती ही है। फिर क्यों न हम मूक पशु पक्षी
जो घायल है बीमार है असहाय है उसके लिए कुछ उपचार की सोचे। खुद नहीं कर सकते तो हमारे यहां तक
भिजवाने में सहयोग करें। निःशुल्क उपचार होता है यहां। इतना भी नहीं कर सकते तो यहां रहने वाले बीमार
घायल पशु पक्षी के लिए कुछ दान -अनाज -दूध -चारा आदि देकर भी सहयोग कर सकते हैं।

निवेदक -सुनील जैन राना  (संयोजक )श्री दया सिंधु जीव रक्षा केंद्र , सहारनपुर -247001 
आप फेसबुक पर भी सर्च कर सकते हैं  https://www.facebook.com/jeevrakshakendra

मंगलवार, 27 नवंबर 2018



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 सुनील जैन राना  ( संयोजक )

श्री दया सिंधु जीव रक्षा केंद्र , चिलकाना रोड , सहारनपुर 247001 


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श्री दया सिंधु जीव रक्षा केंद्र
चिलकाना रोड ,सहारनपुर -247001 (उ प्र )

पिछले लगभग ६० सालों से संस्था असहाय बीमार पशु पक्षियों का निःशुल्क उपचार करती है। सड़क पर घायल
पशु पक्षी को सिर्फ संस्था में पहुंचा दें बाकी का कार्य संस्था करती है। असहाय पशु पक्षी का उपचार ,खाना पानी ,रहने की व्यवस्था एवं देखभाल संस्था करती है। अनेक कुत्ते जिनपर गाड़ी चढ़ जाती है पसलियां आदि टूट जाती हैं उनके बाकि के जीवन तक उनका उपचार ,खाना पानी ,देखभाल संस्था के कर्मचारी करते हैं।

श्री दिगंबर जैन बाल बोधनी सभा द्वारा संचालित यह संस्था जीव दया के कार्यो के लिए दूर दूर तक प्रशिद्ध है।
सैंकड़ो कबूतर जो लकवा ग्रस्त आते हैं अनेक बचा लिए जाते हैं। जो यहां मस्ती से रहते हैं। जिसका कोई नहीं
उसके लिए यह संस्था उपलब्ध है

मै सुनील जैन राना  लगभग पिछले २० सालों से संस्था की देखरेख करता हूँ और संस्था का संयोजक हूँ। चाहता
हूँ लोगो में जीव दया की भावना बलवान हो और सड़क पर घायल बीमार पशु पक्षी के प्रति दया भाव रखते हुए
उसका उपचार करें या संस्था में पहुंचाने की कृपा करें।

संस्था द्वारा नगर में जगह जगह पशु प्याऊ भी बनवाये गए हैं जिनसे बोझा ढोने वाले मूक पशु पानी पीकर अपनी
प्यास बुझाते हैं। रास्ते में पानी उपलब्ध हो तो पशु मालिक भी अपने पशु को पानी पिला ही देता है। चाहता हूँ
प्रत्येक राज्य -नगर -शहर -देहात -गांव में ऐसे पशु प्याऊ बनवाये जाएँ। यह बहुत पुनीत कार्य है। सरकार के
पशु पालन विभाग को भी इस और ध्यान देना चाहिए।

अहिंसा परमोः धर्म * जियो और जीने दो * धन्यवाद  * सुनील  जैन राना - संयोजक 

शुक्रवार, 23 नवंबर 2018



पंजाब -हरियाणा में खूब पुराली जलाई गई - करोड़ो खर्च किये गये
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पुराली जलाने से प्रदूषण की अधिकता को देखते हुए इस बार पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारों ने किसानों

से पुराली न जलाने की अपील की। कारण यह बताया की पुराली जलाने से दिल्ली तक उसका असर जाता है

और प्रदूषण की मात्रा बेहताशा बढ़ जाती है।

सरकार के बहुत आग्रह के बाद भी दोनों राज्यों के किसानों ने खूब पुराली जलाई और खूब प्रदूषण किया।

समाचार की मुख्य बात यह है की पुराली न जलाने के ंद में दोनों राज्यों ने करोड़ो रूपये खर्च कर डाले। अब

समझ में यह नहीं आ रहा की इतना धन किस मद में किस तरह खर्च किया गया होगा ?

अच्छा होता इतने धन से सरकार किसानो को कोई तकनीक उपलभ्ध कराती जिसमे पुराली से कुछ निर्माण

किया जाता या फिर खाद आदि बनाने के बारे में बताया जाता।

यह तो ऐसा ही हुआ जैसे बाढ़ राहत के कार्यो में नदी -नालो पर पुलिस कर्मियों को डंडा लेकर बैठा दिया जाता है

पुलिस वाले से पूछो की बाढ़ आने पर वह डंडे से कैसे बाढ़ को रोकेंगे तो जबाब रोचक से देते हैं।

सरकार को पुराली जलाने से किसानो को रोकने के लिए ठोस योजना बनानी चाहिये। किसानों को पुराली से

कुछ अच्छे विकल्प बताने चाहिये। पुराली से खाद आदि बनाने की तकनीक और उस पर सब्सिडी देने की

योजना बनानी चाहिए। तभी किसान पुराली जलाने की बजाय उसका उपयोग करेंगे।

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शनिवार, 3 नवंबर 2018



राम के देश में राम मन्दिर बनेगा या नहीं ?
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रामायण काल से ही भारत देश में हिन्दू संस्कृति रच बस रही है। प्राचीन काल से ही अनेक संस्कृतियों का उत्थान एवं पतन होता रहा है। सैंकड़ो साल पहले का अखंड भारत आज अनेक खंडो में विभाजित हो चुका है। खासकर
 मुगलकाल में कुछ मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दू एवं जैन धर्म के मंदिरो एवं ग्रंथो को बहुत हानि पहुंचाई गई। अनेकों मंदिर तोड़ दिए गए ,अनेको मंदिरो को मस्जिद में तब्दील कर दिया गया। उनका मुख्य उद्देश्य यह रहा की सिर्फ इस्लाम धर्म होना चाहिए एवं सभी को इस्लाम धर्म मानने वाला होना चाहिए।

मुगलकाल में राजा अकबर के समय अकबर ने सभी धर्मो की महत्ता समझते हुए एक नया धर्म चलाया जिसे    *दीन ए इलाही * नाम दिया गया। इसमें सभी धर्मो को समाहित कर सभी धर्मो की अच्छी बातों को अपनाने पर जोर दिया गया। राजा अकबर के दरबार में भी सभी धर्मो के लोग दरबारी रहे हैं। नौ रत्नो के नाम से प्रसिद्ध नौ दरबारी जिनमे बीरबल  का नाम बहुत प्रसिद्ध है। बीरबल की बुद्धि का लोहा अकबर समेत सभी मानते थे।

अकबर के बाद के कुछ मुगल शासकों ने दीन ए इलाही को खत्म कर फिर से इस्लाम धर्म का पताका फहराना शुरू किया और हिन्दू एवं जैन धर्म पर प्रहार करना शुरू कर दिया। मुगलों के बाद भारत पर अंग्रेजो ने राज किया। अंग्रेजो से लड़ाई में धर्म से बढ़कर आज़ादी की लड़ाई महत्वपूर्ण हो गई। इस लड़ाई में सभी धर्मो के लोगो ने मिलकर भाग लिया और सभी के सहयोग और बलिदान से से भारत आज़ाद हुआ।

आज़ादी के बाद हिन्दू -मुस्लिम विवाद फिर से गहराया और बटवारें में पाकिस्तान का जन्म हुआ। पाकिस्तान मुस्लिम देश बन गया और भारत को हिन्दू देश न बनाकर धर्म निरपेक्ष देश बना दिया गया। भारत में सभी धर्मो के लोग मिलजुलकर रहते आये हैं। लेकिन भारत के कुछ नेता अपनी नेतागिरी चमकाने को नए नए फंडे ढूंढते रहे हैं ,जिसके फलस्वरूप भारत  विसंगतियों ने जन्म ले लिया। इनमें जातिवाद को बढ़ावा देकर वोटबैंक बनाने
के लिए घिनौने कार्य तक करने से नेतागण बाज़ नहीं आये।

आज देश में जातिवाद ने इतने पैर पसार लिए हैं की कोई भी मुद्दा हो उसमें धर्म घुसा दिया जाता है। देश की जनता आपस में मिलजुलकर रहती है ,रहती आयी है। लेकिन नेताओं ने वोटों की खातिर आपस में लड़वाना शुरू कर दिया है। कुछ मुद्दे जो आपसी सहमति से सुलझ सकते हैं उन्हें भी उलझाकर रख दिया। कुछ नेता लोग देश में शांति चाहते ही नहीं उन्हें सिर्फ कुर्सी प्यारी है। कुर्सी के लिए वे कुछ भी अनर्गल करने को तैयार हैं।

देश में तीन दशक से अयोध्या में राम मंदिर का मसला कुछ राजनैतिक पार्टियों के लिए वोटबैंक बन गया है तो कुछ दल इसका विरोधकर अपना वोटबैंक बना रहे हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया हुआ हुआ है। लेकिन कोर्ट इसपर फैसला नहीं दे पा रही है। तारीख पर तारीख लगाई जा रही है। हाल ही में कोर्ट द्वारा फैसला ना देने और आगे की तारीख लगा देने से राजनीति गरमा रही है। हिन्दू वादी दलों एवं देश की अधिकांश हिन्दू जनता अयोध्या में राम मंदिर बनने के पक्ष में बढ़चढ़कर बयान देने में लह गए हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी अभी भी कोर्ट के फैसले की इन्तजार में है। जबकि बीजेपी के कुछ नेता एवं सहयोगी पार्टी शिवसेना ने बीजेपी को ही आड़े हाथो लेना शुरू कर दिया है। वे चाहते हैं की यदि फैसला नहीं आ रहा है तो जनता की भावना अनुसार अध्यादेश लाकर ेआम मंदिर का निर्माण शुरू कराया जाये। जबकि विरोधी पक्ष कोर्ट के फैसले को मानने की बात करता है और अध्यादेश की बात को गलत बताता है।

अब आपसी सहमति की कोई संभावना नज़र नहीं आ रही है। राम भक्त राम मंदिर बनाने को व्याकुल हैं। आने वाले समय में भारतीय राजनीति में बहुत तूफ़ान उठने की संभावनाएं नज़र आ रही हैं। लेकन क्या ही अच्छा हो की आपसी सहमति से राम मंदिर का निर्माण हो। हिंदुओं के बहुत मंदिर तोड़े गए लेकिन फिर भी देश भर में हिन्दू सभी के साथ मिलजुलकर रहते आये हैं। ऐसे में विरोधी पक्ष भाई चारा कायम रखते हुए राम मंदिर बनाने की सहमति प्रदान करे तो यह भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल कहलायेगा। भारत में जातिवाद से परे एक आपसी सहयोग से जीवन जीने की कला की नई शुरुवात होगी।                                 *सुनील जैन राना *



बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

लौह पुरुष सरदार वल्ल्भभाई पटेल 
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विश्व में सबसे ऊँची 182 मीटर की प्रतिमा का लोकार्पण सरदार सरोवर बांध ,केवड़िया गांव ,गुजरात में

भव्य समारोह के दौरान प्रातः 10 बजे सम्पन्न हो गया।

इस परियोजना की लागत ३० अरब रूपये रही। इसमें लगभग 210000 घन मीटर कंक्रीट ,6500 टन

संरचनात्मक इस्पात , 18500 टन मजबूती प्रदान करने वाला इस्पात , 1700 टन कांस्य आवरण का प्रयोग

हुआ। इसको बनाने में 13 महीने इंजनियरिंग में एवं 33 महीने बनाने में लगे जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।

आने वाले समय में इससे भारत देश में पर्यटन एवं गौरव बढ़ेगा।

स्टैचू के पास ही सरदार पटेल के जीवन पर आधारी संग्रहालय एवं अनेक दर्शनीय स्थल होंगे जिनसे पर्यटक

आकर्षित होंगे।



विश्व में सबसे ऊँची स्टैचू 
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सरदार पटेल - भारत               182  मीटर 
स्प्रिंग टेम्पल बुद्धा -चीन           153 मीटर 
लेक्युन सेटक्यार -मयंमार        116 मीटर 
उशिकु दायबुत्सु -जापान         110 मीटर 
स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी -अमेरिका    97 मीटर 
द ग्रेट बुद्धा -थाईलैंड                 91 मीटर 
द मदर लैंड कॉल्स -रूस           87 मीटर 

भारत को एक सूत्र में पिरोने वाले सरदार पटेल भारत के लौह पुरुष के जन्मदिवस पर शत शत नमन

मोदीजी को हार्दिक शुभ कामनायें।  जय हिन्द।                                * सुनील जैन राना *



स्टैचू ऑफ़ यूनिटी

विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा

182 मीटर के लोकार्पण पर

हार्दिक बधाई 

सोमवार, 29 अक्तूबर 2018


कैसे बनेगा डिजिटल इंडिया -सर्वर रहता है डाउन
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सरकार सभी प्रकार के लेन -देन एवं सरकारी विभिन्न विभागों को ऑनलाइन /डिजिटल करना चाह रही है।

लेकिन देश में नेट की हालत यह है की अधिकांश जगह सर्वर ही डाउन रहता है। आज प्रातः मैं अपना समाचार

पत्र पॉलिटिकल पेट्रोल जो प्रत्येक सोमवार को नियमित प्रकाशित होता है और फेसबुक /ब्लॉग पर डाल दिया

जाता है वह आज सर्वर डाउन होने के कारण प्रातः के बाद दोपहर में एक पेज ही पोस्ट कर पाया। अब शाम को

सात बजे के बाद दूसरा पेज पोस्ट हुआ।

रिलाइंस का JIO ,एयरटेल  एवं सरकारी बीएसएनएल का ब्रॉडबैंड होने के बावजूद सभी का यह हाल है। ऐसे में

कैसे आगे बढ़ेगा इंडिया ?                                                                            *   सम्पादक -सुनील जैन राना *



https://www.facebook.com/politicalpetrol?ref=hl


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रविवार, 14 अक्तूबर 2018



ये ME Too - Me Too क्या है ?
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कुछ दिनों से Me Too का हल्ला बोल चल रहा है। लेकिन शायद अधिकांश आम जनता Me Too के बारे में नहीं

जानती होगी की यह क्या बला है ? फ़िल्मी भाषा में कहेंगे की यह ईलू ईलू का भाई है मीटू मीटू है। कभी किसी ने

किसी के साथ कभी गलती से ईलू ईलू कर लिया हो तो अब उसे मीटू मीटू से गुजरना पड़ेगा।

ईलू ईलू करने वाले साहसी लोग समझ नहीं पा रहे हैं की मीटू उनके लिए अच्छा है या बुरा। दूसरी तरफ ईलू ईलू

झेलने वाली महिलायें इसे अच्छा ही मान रही हैं। नौकरी पेशा महिलायें मीटू के आ जाने से बहुत खुश हैं। दफ़्तर

में होने वाली छेड़छाड़ -शोषण से अब बच सकेंगी और किसी पुरानी छेड़छाड़ -शोषण का बदला भी ले सकेंगी।

समस्या उन लोगो को आ रही है जिनके साथ बदले की भावना से आरोप लगाये जा रहे हों।फ़िल्मी जगत 

में आपस में ईलू ईलू होना कोई खास बात नहीं है। लेकिन आपसी सहमति से हुआ ईलू ईलू अब बुढ़ापे में 

मीटू मीटू होने वाला है।                                                                                                -  सुनील जैन राना