मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

भोजन पर सर्वे

WHO खाने पर एक सर्वे हुआ, सर्वे पूरी दुनिया के खाने पर किया गया जिसका उद्देश्य ये जानना था की पूरी दुनिया में सबसे अच्छा खाना क्या है उसके लिए उसे 3 कसौटियों पर खरा उतरना था पहला को वो बनाने में आसान हो दूसरा उसमे एक इंसान के लिए सभी जरूरी तत्व हो तीसरा खाने में स्वाद होना चाहिए Who की टीम पूरे दुनिया घूमती है और ये देखती है की दुनिया में सबसे आसानी से बनाने वाला खाना क्या है और उस देश के लोग उसे कितना खाते हैं इसमें उन्हें एक खाना मिला वो था दाल चावल उन्होंने देखा की भारत के हर स्टेट में डाल चावल बेहद वृहद रूप से खाया जाता है कहीं साभार कही दाल कहीं दालमा दूसरी कसौटी आतीं है की बनाने में आसान हो इसमें भी डाल को चावल को सेलेक्ट किया गया वो जानकर हैरान थे की चावल को मात्र पानी डालकर बनाया जाता है और दाल में हल्दी और नमक अब तीसरी कसौटी खाने में टेस्ट हो। तो जब उन्हें गर्म गर्म दाल चावल और ऊपर से देसी घी डाल कर दिया गया तो पहला निवाला खाते हो सब मस्त हो गए अब चौथी कसौटी की पोषण हो इसके लिए दाल और चावल के सैंपल को अपने साथ ले गए और उन्होंने पाया दाल में फाइबर प्रोटीन आयरन और जरूरी मिनरल थे Antibiotic और आयोडीन की कमी हल्दी और नमक से पूरी हो रही थी चावल में कार्बोहाइड्रेट और अन्य तरह के विटामिन थे अंत में निष्कर्ष ये निकला की भारतीय दालचावल सब्जी और अगर उसके साथ सलाद हो तो ये दुनिया के सबसे बेहतरीन खाने में से एक है ये एक मात्र खाना है जिससे किसी भी तरह का साइड इफेक्ट नहीं होता है बाद में पता चला की इस सर्वे का मुख्य उद्देश्य इस खाने को लेके ये पता करना था की यदि अमेरिका और यूरोप में युद्ध की स्थिति हो तो सबसे सस्ता और सबसे कम समय में तैयार होने वाला पौष्टिक खाना क्या है जिसे महीनो खाया जाए तो भी मन ना भरे और वास्तव में डालचावल जितना सिंपल है उतना ही बेहतर लेकिन हम लोग इसे छोड़ pizza burger खाते हैं दाल चावल का खर्चा भी काफी कम होता है तो आप इस बात से कितना सहमत हैं हमे कमेंट कर के बताइए जरूर

सोमवार, 22 अप्रैल 2024

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शनिवार, 20 अप्रैल 2024

महावीर जयंती

कल भगवान महावीर का जन्म-कल्याणक है। भारत में जो ब्राह्मण-श्रमण द्वैत रहा है, उसकी प्रखर अभिव्यक्ति आज बुद्ध के माध्यम से बहुजन समाज द्वारा बहुत की जाती है, किन्तु महावीर को भुला दिया जाता है। जबकि जैन धर्म मौलिक श्रमण-धर्म है और अनीश्वरवादी है। आज सनातन के नाम पर भारत में ब्राह्मण-धर्म की विजय-पताका फहरा रही है और धीरे-धीरे फिर से वैसी परिस्थितियाँ निर्मित होने लगी हैं, जैसी कि बुद्ध और महावीर के कालखण्ड में थीं। आडम्बर, कर्मकाण्ड, मूर्तिपूजा और जीवहत्या का बोलबाला फिर से हो रहा है। धर्म में अशुद्धि चली आई है। ब्राह्मण-धर्म का परिष्कार श्रमण-धर्म से उसके सम्यक् सामंजस्य बिना सम्भव नहीं है और मेरे निजी मत में वेदान्त वह भावभूमि है, जहाँ पर आकर ब्राह्मण-धर्म की औपनिषदिक-धारा श्रमण-धर्म के आत्म-प्रकाश से जा मिलती है। जैसे 'गीता' में श्रीकृष्ण और 'धम्मपद' में बुद्ध की वाणी है, उसी तरह से 'समण सुत्त' में भगवान महावीर की वाणी संकलित है। जैनियों में दिगम्बर सम्प्रदाय ने महावीर-वाणी का संकलन नहीं किया है, श्वेताम्बरों ने किया है। दिगम्बर प्राय: उन वचनों को प्रामाणिक नहीं मानते। जैन आगमों में जो महावीर-वाणी है, उसे श्रुति-परम्परा से कालान्तर में लिपिबद्ध किया गया था। जैसे बौद्धों में संगीतियाँ हुई थीं, वैसे ही जैनों में वाचनाएँ हुई थीं, जिनमें आगमों का संकलन हुआ था। दिगम्बरों ने 'षटखण्डागम' को मान्यता दी है, जो कि आगमों पर आचार्य धरसेन के उपदेशों पर आधारित है। किन्तु 'समण सुत्त' का संयोजन अत्यंत अर्वाचीन है। इन्हें वर्ष 1974 में विनोबा की प्रेरणा से क्षुल्लकश्री जैनेंद्र वर्णी ने संकलित किया था। इसमें जैनागमों के सारतत्व को यों संयोजित किया गया है कि यह जैन-गीता तक कहलाया है। इसे समस्त जैन पंथों के द्वारा मान्यता दी गई। आचार्य उमास्वामी के 'तत्वार्थसूत्र' के बाद कोई दो हज़ार साल में पहली बार ऐसा हुआ था। 'समण सुत्त' : यह अर्द्धमागधी भाषा का शब्द है, जो संस्कृत में 'श्रमण सूत्र' कहलावेगा। यहाँ श्रमण शब्द ध्यातव्य है। ब्राह्मण-धर्म का आधार वैदिक परम्परा है। श्रमण-धर्म का मूल जैन धर्म में है। बौद्ध और आजीवक भी श्रमण हैं। जैनियों ने बौद्धों से पहले अपना श्रमण-आंदोलन आरम्भ कर दिया था। जैनियों के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ तो कृष्ण के चचेरे भाई बतलाए हैं। नेमिनाथ और पार्श्वनाथ (23वें तीर्थंकर) : दोनों में ही जीवदया अत्यंत प्रबल थी, जो महावीर की अहिंसा में शिखर पर पहुँची। ब्राह्मण संस्कृति से जैनियों का वैसा तीक्ष्ण मनोवैज्ञानिक संघर्ष नहीं रहा है, जैसा बौद्धों से रहा। इसके अनेक कारण हैं। एक दार्शनिक कारण तो बौद्धों का अनित्य-अनात्म है, जो कि सनातन के मूलाधार पर ही प्रहार करता था। इसका राजनैतिक कारण बौद्धों को मिला राज्याश्रय था, जिसने उन्हें इतिहास के एक कालखण्ड में भारत में केंद्रीय महत्व का बना दिया था। अशोक से आम्बेडकर तक बौद्धों को राजनैतिक प्रश्रय मिलता ही रहा है। आधुनिक दक्षिण-पूर्व एशिया में तो बौद्धों के गणराज्य हैं। शंकर की धर्मध्वजा ने भारत में सनातन की पुन: प्रतिष्ठा की थी। किंतु श्रमणों के बिना भारत कभी पूर्ण नहीं हो सकता है। डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने बहुत सुंदर बात कही है कि श्रमणों के कारण ब्राह्मण-धर्म में वानप्रस्थ और संन्यास को महत्व मिला। अहिंसा और जीवदया के मूल्य भी श्रमणों से ही मिले। वैदिक ऋषि और श्रमण मुनि कालान्तर में ऋषि-मुनि का युग्म बनकर एकाकार हो गए थे। वैदिक संस्कृति में चले आए दोषों का संशोधन श्रमणों ने किया था। इन अर्थों में श्रमण सुधारवादी, प्रगतिशील और संशोधनकारी हैं। रजनीश ने कहा है कि जहाँ वैदिक धर्म अनेकता की ओर प्रसारित होता है- एकोऽहं बहुस्याम्!- वहीं श्रमण धर्म एकत्व की ओर लौटता है, बाहर से भीतर प्रतिक्रमण करता है। यह आरोह और अवरोह की तरह है। आधुनिक काल में गांधी और विनोबा श्रमण-संस्कृति से प्रभावित रहे। गांधी के आध्यात्मिक गुरु श्रीमद् राजचंद्र श्रमण परम्परा के ही व्याख्याता और व्यवर्हता थे। गांधी के प्रति नव्य-सनातनियों का जो रोष है, उसके भीतर बहुत गहरे ब्राह्मण-श्रमण द्वैत है। श्रमण परम्परा में श्रम, संयम और शमन का बड़ा महत्त्व है। अहिंसा, अपरिग्रह, इंद्रिय-निग्रह, देह-दमन, जीवदया और बहुचित्त की एकसूत्रता उसके केंद्रीय विचार हैं। भारतीय चेतना की अंतर्वस्तु में श्रमण परम्परा भी उतनी ही अनुस्यूत है, जितनी कि ब्राह्मण परम्परा। इसका संवैधानिक आलम्बन यह है कि हिन्दू कोड बिल के दिशानिर्देशों में सनातनियों और आर्यसमाजियों के साथ ही बौद्धों और जैनियों को भी सम्मिलित किया गया था। यानी एक व्यापक अर्थ में ब्राह्मण और श्रमण दोनों हिन्दू हैं। नवबौद्धों और दलित-आन्दोलनों के कारण आज भारत में बुद्ध के बहुत नामलेवा हैं, किंतु वृहत्तर भारतीयता के द्वारा भगवान महावीर को और सम्मान से स्मरण करना चाहिए और उनकी देशनाओं पर मनन करना चाहिए। महावीर का चिंतन अत्यंत सूक्ष्मग्राही और गम्भीर है। जैन परम्परा के पारिभाषिक शब्दों का अपना ही एक लोक है। समय, धारणा, विचार, अणु, जीव, द्रव्य, चित्त जैसे अनेक शब्दों का हम जो अर्थ निकालते हैं, जैनियों में उनके नितान्त ही भिन्न अर्थ हैं। समय को आत्मा का पर्याय बतलाकर भगवान महावीर ने एक विचार-क्रांति कर दी थी। इस विलक्षण तीर्थंकर की भारतीय चेतना में सम्यक प्रतिष्ठा हो और भोगवाद से क्लान्त भारत और विश्व में श्रमण धर्म का पुनर्भव हो, इसी कामना के साथ भगवान महावीर की जन्म-जयंती की अग्रिम शुभकामनाएँ सम्प्रेषित करता हूँ। Sushobhit

धन कैसे बढ़ाएं ?

म्यूचुअल फण्ड- शेयर या बैंक FD धन कमाने के अनेको तरीके हैं। धन कमाकर उसे और ज्यादा बढ़ाने के भी अनेको तरीके हैं। उन्हीं में से 3 तरीके म्यूचल फण्ड, शेयर बाजार एवं बैंक में फिक्स डिपोजिट भी हैं। आम आदमी के लिये बैंक एफडी ही सबसे सुलभ और निश्चित धनराशि प्राप्त करने का साधन है। म्यूचल फण्ड एवं शेयर की बात करें तो दोनों में सैंकड़ो कम्पनियों के म्यूचल फण्ड एवं शेयर प्रचलन में हैं। सूत्रों की बात यह भी है की इन दोनों में ही लगभग 90% उपभोक्ता नुकसान ही उठाता है। मात्र 10% उपभोक्ता नफ़े में रह पाता है। म्यूचल फण्ड में धन लगाने को प्रेरित करने के लिये टीवी पर विज्ञापन भी आते हैं जिनमें बड़ी-बड़ी सेलेब्रिटी एवं भारत रत्न जैसे लोग यह कहते हैं की म्यूचल फण्ड सही है। क्या ये लोग आम जनता को सभी म्यूचल फण्ड में धन की बढ़ोतरी होगी ऐसा वायदा कर सकते हैं? यदि नहीं तो फिर सही कैसे? यही हाल शेयर बाजार में शेयरों का है। उनमें भी मात्र 10% लोग ही मुनाफा कमा पाते हैं। दरअसल ये दोनों ही अनेक बातों पर निर्भर रहते हैं। देश की अर्थव्यवस्था, देश के राजनेता, देश मे गोल्ड रिजर्व, देश मे विदेशी मुद्रा का भंडार। विदेशों में देश की इज्जत। देश के प्रधानमंत्री की कार्यप्रणाली आदि अनेक बातों पर शेयर बाजार निर्भर रहता है। सिर्फ यही नहीं विश्व की गतिविधियों पर भी शेयर बाजार प्रतिक्रिया दे देता है। वास्तव में तो देश मजबूत होने पर भी यदि अमेरिका आदि के बाजार नीचे खुलते हैं तो भारतीय बाजार भी नीचे ही रहते हैं। वर्तमान में कई देशों में युद्ध हो रहा है जो तृतीय विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रहा है। ऐसे में भारतीय बाजार भी कितने नीचे गिर जाये कहा नहीं जा सकता। टीवी पर शेयर समस्या के समाधान को शेयर वैज्ञानिक उपाय बताते हैं। अंत मे यह कहकर की इनमें से कोई भी शेयर हमारे पास नहीं है अंतर्ध्यान हो जाते हैं। बैंक एफडी से निश्चित सीमा में धन कमाया जाता है। म्यूचल फण्ड में एफडी से ज्यादा धन कमाया जा सकता है? शेयर बाजार में अकूत धन कमाया जा सकता है? लेकिन कौन सी कम्पनी में निवेश करें यह समझ मे नहीं आता है फिर भी समझ अपनी-अपनी, किस्मत अपनी-अपनी। सुनील जैन राना

भोजन पर सर्वे

WHO खाने पर एक सर्वे हुआ, सर्वे पूरी दुनिया के खाने पर किया गया जिसका उद्देश्य ये जानना था की पूरी दुनिया में सबसे अच्छा खाना क्या है उसके ...